What Does भाग्य Vs कर्म Mean?

जहां समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया, वहीं समुद्र से देवी लक्ष्मी और दिव्य शंख, कौस्तुभ मणि जैसी दिव्य वस्तु भी निकली जो भगवान विष्णु को प्राप्त हुईं, यही है भाग्य की महिमा। इस पर नारद मुनि ने प्रश्न उठाया कि समुद्र मंथन में सभी का बराबर-बराबर योगदान था, फिर भी किसी को लक्ष्मी प्राप्त हुईं और किसी को विष क्यों प्राप्त हुआ।

अपने किया हुए कर्मों का इन्साऌफ और इन्साफ उसी का होता है जब कुछ किया हो वरना किस चीज का इन्साफ कुछ नहीं करना भी तुम्हारा ही एक कर्म है जिसका असर भी तुम्हारे आने वाले समय पर पड़ता है। ज्योतिष भाग्य को समझते हुए और कर्मों के द्वारा उस भाग्य को निखारने का एक जरिया मात्र है।

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कर्म कितने प्रकार के होते हैं? किस प्रकार संचित कर्म जुड़ा होता है मनुष्य के भाग्य से?

कर्म एक ऐसा सिद्धांत है जो भाग्य को समझने में मदद करता है। हम मानते हैं कि केवल हमारे कार्य ही कर्म हैं, जबकि हमारे द्वारा सोचे गए हर विचार और बोले गए हर शब्द भी कर्म के निर्माण में भूमिका निभाते हैं। “जैसा मेरा कर्म, वैसा मेरा भाग्य।” यही वह नियम है जो हर व्यक्ति के भाग्य को निर्धारित करता है। कर्म को समझना हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि प्रत्येक कार्य, शब्द और विचार का एक परिणाम होता है और यह हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है।

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वस्तुत: कर्म ही हमारे उत्थान और पतन का कारण है। कर्म ही हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करता है। अत: हम सबको सदैव हानि पहुंचाने वाले कर्मो से दूरी रखते हुए अच्छे कर्मो का वरण करना चाहिए।

Karm se Hello luck ka nirman hota h,jaisa hm karm krenge waisa hi hmara bhagya bnega .So bhagya se bada karm h.

आचार्य जी– हां मैं ये सब जानता हूं, पर मैं तो आपसे वही पूछ रहा हो जो मेरे मन में आपकी बातों से सवाल बन रहे हैं। अच्छा आप खुद ही बताएं कि अगर हम भाग्य को बदल नहीं सकते और समय से पहले हमें कुछ नहीं मिल सकता, तो हम ज्योतिषाचार्य के पास जाकर भी क्या पा लेंगे?

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ।।

खुद को भाग्य के भरोसे वही छोड़ता है जो कर्म नहीं करना चाहता। कर्म करने से ही भाग्‍य बनता है। जिसको कर्म में जितना विश्‍वास है वह व्‍यक्ति उतना ही सक्सेस होगा। हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से न ही भाग्‍य साथ देता है और न कर्म ही होता है।

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सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। वह या तो विचारों के माध्यम से सक्रिय है अथवा क्रियाओं के माध्यम से या फिर कारण बन कर कर्म में योगदान कर रहा है। जीव-जंतु हों या मनुष्य, कोई भी अकर्मण्य नहीं है और न ही कभी रह सकता है। विद्वानों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताए हैं जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म होता है, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध।

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